मुसाफिर प्यारे के दफ़्तर में बैठा अखबार की सुर्खियों पर नज़र दौड़ा रहा था, तभी एक समाचार पर आकर उसकी नजर अटक गई, न्यूज़ थी - पॉलीथीन पर छापे मारी 33 हजार वसूले......पीछे से प्यारे लाल की आवाज़ सुनाई दी...”क्यों मुसाफिर साहब क्या पढ़ रहे हो?” मुसाफिर उसकी तरफ अखबार बढ़ाता हुआ बोला, “लो पढ़ लो।”
प्यारे लाल — इस मे क्या है? पॉलीथीन तो रोज ही पकड़ी जा रही है।
मुसाफिर — इस तरह पकड़ी जा रही है? किसी से दो थैली किसी से चार थैली! ये केसी पकड़म -पकड़ाई है? कोई नीति भी है सरकार की? व्यापारी कहते हैं कि सरकार की नीति स्पष्ट नहीं है। वन टाइम यूज़ प्लास्टिक क्या है? रोज दूध शहर के अंदर थैलियों में आ रहा है। बन्दा दूध यूज़ करके खाली थैली को फेंकेगा ही उसे सम्भाल कर थोड़ा ही रखेगा, क्योंकि कितने मूल्य में इसे वापिस लिया जाएगा थैली पर कहीं नहीं लिखा, सरकार इसे क्यों नहीं बन्द करती? बंद-पानी की बोतल के बारे में क्या ख्याल है लोग उसे सम्भाल कर रखते हैं क्या? फेंकते ही है ना। सुधर जाओ प्यारे लाल जी अध-कचरे कानून की आड़ में व्यापारियों को परेशान मत करो। वो व्यापारी ना जाने तुमसे क्यों घबराते है, उन्हें प्रेस वार्ता करके यह मुद्दा जनता के बीच मे ले जाना चाहिए जिससे जनता को भी तुम्हारी बदमाशियों का पता चल सके।
प्यारे लाल — व्यापरियों में इतनी समझ कहाँ है, वो क्या प्रेस वार्ता करेंगे। उन्हें तो हम डरा कर रखते है, इसलिए तो हमने उनके हाथ मे अब तक सरकारी आदेश नहीं थमाया। बस उन्हें कह देते हैं कि रेड पड़ने वाली है सतर्क हो जाओ, वो मेसेज आगे कन्वे कर देते है और दो चार थैली सामने आ जाती हैं।
मुसाफिर — बाकी थैलियां?
प्यारे लाल — कुछ हमारे कमाने खाने के लिए भी छोड़ोगे या नहीं?
मुसाफिर प्यारे लाल के चेहरे पर काफी देर तक निगाहें टिकाये रहा और सोचता रहा......कैसे शातिर हैं ये लोग! व्यापारी को ढंग से शिक्षित ही नहीं कर रहे हैं, बस वसूली का रास्ता निकाल रखा है। मुख्यमंत्री का नगर में इतनी लम्बी मानव श्रंखला बनाने से क्या फायदा हुआ नगर निगम से दून अस्पताल तक नाले वन टाइम यूज पॉलीथिन से भरे पड़े है कैसे बनेगी स्मार्ट सिटी लाखों रुपये खर्च कर दिये गये है उसके बाद भी शहर के नदी नाले पोलेथिन से भरे पड़े हो, दुर्भाग्य पूर्ण है । जितनी शिद्दत से मानव शृंखला का आयोजन हुआ, उतनी ही गम्भीरता से व्यापारियों के लिए कार्यशालाएँ आयोजित की जातीं तो परिणाम जल्द मिलते और सरकार वाहवाही भी लूटती। लगता है शासन-प्रशासन में दिखावा ज्यादा है इच्छा शक्ति कम।
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